एलडीसी भर्ती 2013: मंत्री के निर्देश ठेंगे पर, ज़िलों ने नहीं दिए 'अपराधी' रिकॉर्ड़्स!
नमस्ते दोस्तों!
आज एक ऐसी ख़बर आई है, जो हमारे सरकारी सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही पर बड़े सवाल खड़े करती है. बात हो रही है साल 2013 की एलडीसी (लोअर डिविजन क्लर्क) भर्ती की, जिसमें बड़े पैमाने पर धांधली के आरोप लगे थे. अब तो स्थिति ये है कि मंत्री के सख्त निर्देश के बाद भी ज़िले जांच कमेटी को ज़रूरी रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं करा रहे हैं!
क्या है मामला?
दरअसल, एलडीसी भर्ती 2013 में ऐसे लोगों को भी नौकरी देने के आरोप थे, जिनके खिलाफ़ आपराधिक मामले दर्ज थे या जिन्होंने टाइपिंग टेस्ट नहीं दिया था. पंचायती राज विभाग ने इस मामले में जांच के लिए एक कमेटी बनाई थी, जिसे 15 दिन में सभी ज़िलों से रिपोर्ट और रिकॉर्ड उपलब्ध कराने को कहा गया था.
लेकिन दोस्तों, हैरानी की बात ये है कि 15 दिन की समय सीमा बीत जाने के बाद भी एक भी ज़िले ने जांच कमेटी को रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं कराए हैं! यह सीधे-सीधे मंत्री के निर्देशों की अवहेलना है.
क्यों इतनी गोपनीयता? क्या छिपाया जा रहा है?
इस भर्ती में नियम 286(3) का उल्लंघन कर "अपराधी" पृष्ठभूमि वाले और टाइपिंग टेस्ट स्किप करने वाले अभ्यर्थियों को नौकरी देने के आरोप लगे थे. हाई कोर्ट ने भी 2016 में निर्देश दिए थे कि टाइपिंग टेस्ट न देने वालों को नियुक्ति न दी जाए. इसके बावजूद, करीब 15 से 20 हज़ार ऐसे कर्मचारी नौकरी पर लगे हुए हैं.
बीकानेर ज़िला परिषद में ही 49 ऐसे मामलों की शिकायतें मिली हैं, जहां आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को नौकरी दी गई थी. इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पूरे प्रदेश में यह आंकड़ा कितना बड़ा हो सकता है.
सरकार का कड़ा रुख और आगे क्या?
राज्य सरकार इस मामले को लेकर गंभीर है. खबर है कि अपराधियों को नौकरी पर रखने वाले ज़िला परिषदों के सीईओ पर भी कार्रवाई की बात कही गई है. वित्त विभाग भी सभी परिणामों की जांच करेगा, क्योंकि अनियमितताएं राजस्थान पंचायती राज नियम 1996 के नियम 296 का भी उल्लंघन हैं.
अब सवाल ये है कि जब मंत्री खुद सख्त निर्देश दे रहे हैं, तो ज़िले रिकॉर्ड क्यों नहीं दे रहे? क्या यह किसी बड़े 'राज' को छिपाने की कोशिश है? इस देरी से जांच प्रक्रिया भी धीमी पड़ रही है. अगर दोषी पाए गए, तो ऐसे कर्मचारियों को 2 साल की प्रोबेशन अवधि के बाद नौकरी से हटाया भी जा सकता है.
यह मामला दिखाता है कि सरकारी भर्तियों में पारदर्शिता कितनी ज़रूरी है. उम्मीद है कि सरकार इस मामले में सख्त कार्रवाई करेगी और दूध का दूध, पानी का पानी होगा.
आपको क्या लगता है, ऐसी स्थिति में सरकार को क्या करना चाहिए? अपनी राय कमेंट्स में ज़रूर बताएं!
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